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भारतीय किसानों के पीछे का सच और उनके विरोध की वजह क्या है ? - Dr. Aradhna Kumari (Farmers Protest)

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परिचय: 
भारत की आत्मा गांवों और किसानों में बसती है । इसलिए भारत एक कृषि प्रधान देश भी कहलता है । यहां की 70-80 प्रतिशत जनता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन भारतीय किसान की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है । स्वतंत्रता के 50 से अधिक वर्षो के बाद भी वह गरीब, अशिक्षित और शक्तिहीन है ।उनके परिवार के सदस्य भी दिन-रात खेत-खलिहान में जुटे रहते हैं, बड़ी कठिनाई से वह अपना और अपने बाल-बच्चों का पेट भर पाता है । कभी कभी गांव में अकाल पड़ जाती है, और भूखों मरने की नौबत आ जाती है, वह अपने हाथों से कठोर परिश्रम करते है, खून-पसीना बहाते है, फिर भी वह गरीब और परवश है ।उनकी आय इतनी कम होती है कि वह अच्छे बीच, खाद, औजार और पशु नहीं खरीद पाते है, वह अशिक्षित है, और कई अंधविश्वासों और कुरुतियों का शिकार। सेठ-साहूकार और हमारी सरकार इसका पूरा लाभ उठाकर उनका शोषण कर रहे हैं । वह अपनी संतान को पड़ाने के लिए भी नहीं भेज सकते है , या तो गांव में स्कूल नहीं होता, या फिर बहुत दूर होता है।इसके अतिरिक्त वह बच्चों से खेत पर काम लेने के लिए विवश है,  वह उन्हें पशु चराने जंगल में भेज देता है।  

प्रारूप: 
सरकार ने भारतीय किसानों की सहायता के लिए कुछ कदम उठायें हैं जैसे उन्हें कम ब्याज पर कर्ज देने की व्यवस्था की गई है जिससे वह बीज, खाद आदि क्रय कर सके । परन्तु यह पर्याप्त नहीं है, सच तो यह है कि उन तक सहायता पहुंच नहीं पाती है आज भी नयी संशोधन विधयक के तहत जो बिल पास किया गया है वो भी किसानों के लिए पर्यापत नहीं है साथ ही आज भी बिचौलिये बीच में ही उसे हड़प लेते हैं अशिक्षित होने के कारण वह अपने, अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं, दूसरे लोग सरलता से उनके आधिकारों का हनन कर लेते हैं । सबसे पहले सरकार को कम से कम हर गांव में  एक " किसान शिक्षा केंद्र " खोलना चाहिए और पहले उन्हें उनके मौलिक अधिकार, कर्ज, उच्च स्तर पे व्यपार और भी उनसे मिलती जुलती शिक्षा का प्रवधान किया जाना बहुत आवश्यक है ।किसान की दूसरी कठिनाई उसकी आर्थिक स्थिति से सम्बन्ध रखती है। अब भी किसान को अच्छी ब्याज की दर तथा आसान किस्तों पर ऋण नहीं मिल पाता है। सरकार की ओर से सहकारी बैंकों की स्थापना करके उसकी इस कठिनाई को दूर करने का प्रयत्न हो रहा है पर एक तो ये बैंक अभी थोड़े हैं और फिर अशिक्षित होने के कारण किसान इनसे पूरा लाभ नहीं उठा पाते हैं। कुछ स्वार्थी कर्मचारियों की धाँधलेबाजी भी किसानो को लाभों से बंचित रहने को विवश करती है। साथ ही उनके बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य, मुफ्त और सर्वसुलभ बनाने की परम आवश्यकता है। जब तक भारतीय किसान निर्धन और अशिक्षित है, तब तक देश की उन्नति किसी भी हल में नहीं हो सकता है। हर तरह से उनकी सहायता कर उनको स्वावलम्बी और शिक्षित बनाया जाना चाहिये । कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि वह कभी खली न बैठे और खेत खाली नहीं रहे, इसके लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था बहुत आवश्यक है । 

कृषक की वर्तमान स्थिति: 
सबका अन्नदाता किसान आज भी अन्न को तरसता है।आखिर क्यों ? स्वतन्त्र भारत के अन्दाता की यह दशा देखकर भला किसका हृदय टूक-टूक न हो जायेगा !! और सरकार ने इसे संसद में बिना बहस के ही इस कानून को डायरेक्ट पास कर दिया। किसी भी किसानों को प्राइवेट करने से चिंता नही है, लेकिन सारे जिम्मदारी सरकार प्राइवेट को देकर सो जाती है इस बात की उनको जय्दा चिंता है। फिर प्राइवेट इशी का फायदा उठाकर लूटने लगते है, और कभी कभी प्राइवेट कंपनी अपना फायदा लेने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है , और उस समय सरकार चुप चाप बैठकर तमासा देखती है, जब तक की जनता की रोड पर न आ जाए " जो की अभी वर्तमान में हो रहा है "। मेरा ऐसा मानना है की सरकार जब अभी सही मूल्य किसानों को नही दे पाती है तो आने वाले समय में इशे प्राइवेट को दे कर क्या मिलेगा? क्या उन्हें उनका सही मूल्य मिल जायगा? या अपनी ज़िमेदारी से पीछा छुड़ाना चाहती है सरकार?कभी भी किसान एमएसपी पर अपना अनाज नहीं बेच पाती है क्यों कि सरकारी कर्मचारी और आड ती की मिली भगत रहती है, तो किसानों को मजबूरी में उसे कम कीमत में बेचनी पड़ती है और यही सच्चाई है। 

आप भी हमारे इस छोटी सी लेख से सहमत है तो मुझे अपना विचार जरूर दीजिएगा कमेंट में और ईमेल पे !

 डॉ अराधना कुमारी 
( समाज सेविका एवं प्रवक्ता )

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