विश्व के 2 अरब 40 करोड़ बच्चों में अधिकांश गरीबी कुपोषण और बिमारियों से ग्रस्त है लेकिन आज का विश्व 26000 परमाणु बम हथियारों को बनाकर परिक्षण करने में लगा हुआ है। मानवता को नष्ट करके अब चन्द्रमा पर जाने तैयारी कर रहा है। इस विलासी विकास का संवेदनहीन स्वरूप का ना कोई लिंग भेद है न उम्र भेद। जब हम बच्चों को लगातार टीवी पर कार्टून देखते और उनमें व्यवहार को देखते है तो परिणाम सामने दिखाई देते है। युवा शराब, तम्बाकू, सिगरेट, मांसाहार में लिप्त हो रहा है। मोबाईल पर अश्लीलता और इन्टरनेट पर अपना समय व्यतीत करता है और जब कार्य क्षेत्र में उतरता है तो चाहे वह वकील बने, पत्रकार, नेता, शिक्षक या चिकित्सक उसे सिर्फ पैसा कमाने की मशीन की तरह काम करना आदत बन चुकी होती है।
जब हम सुनते है कि मुम्बई के एक बड़े उद्योगपति के घर का मासिक बिजली का बिल 74 लाख रुपये है तब उन्हें यह नहीं विचार करते कि आज गांव की स्थिति तो छोडि़ये महानगरों में भी लाखों लोग राशन की दुकान में लग कर मिट्टी का तेल खरीद कर अपने घर की रोशनी करते है। भारत में सिंचाई तथा उद्योग में इतनी बिजली खर्च नहीं होती जितनी पॉश कॉलोनियों में एयर कंडीशनर्स फ्रिज तथा टीवी पर खर्च होती है उस पर जब बिजली इन्वर्टर में भर कर रखते हैं, व्यक्ति अथवा परिवार सुखी देखना चाहता है जबकि विधायक-मंत्री विधान सभा में बैठ कर मोबाईल पर अश्लील फिल्में देखते हैं, क्या यह रोबोट का रूप नहीं है?
हरियाणा में गुड़गांवा में एक फ्लेट का मासिक किराया 29 लाख रुपये है जबकि भारत में बहुसंख्यक 32 रुपये भी नहीं कमा रहे। प्रोपर्टी निवेश, गोल्ड निवेश का चलन रोबोट प्रवृत्ति को बढ़ाता है।
आसमान में तारों की गिनती, सिर में बालों की गिनती तथा बरसात में मेंढकों की गिनती की तरह रात दिन होने वाले घोटालों में कितन धन कहां गया इसे जान पाना सम्भव नहीं है। एक से एक बड़े वकील उन्हें बचाने के लिए सभी हथकंडे अपनाता है। देश के विकास के नाम पर विदेशी पूंजी भारत में लगाने के लिए हमारे नेता कितने अधीर है लेकिन विदेशों में जमा धन वापिस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
साहित्य सम्मेलनों में चाय तो मोल की मिलती है, पानी ढूंढे नहीं मिलता। शराब-बियर आसानी से निःशुल्क मिलती है। चुनावों में पानी की तरह शराब मुफ्त बांटी जाती है। नेताओं के दोनों हाथों में लड्डू है चुनाव जीत कर सांसद-विधायक बनते है और जनता को शराब का आदी बनाकर राजस्व कमाते हैं।
पिछले साठ सालों में जितनी गौ हत्याएं सरकारी बूचढ़खानों में हुई है, उसका परिणाम है कि गौ संर्वधन के नाम पर कई करोड़ खर्च करके भी दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही। देसी नस्ल की गाय भारत में लुप्त होती जा रही है। मांसाहार का चलन बढ़ रहा है। हमारे धर्म-ग्रन्थ सभी जीवों तथा वनस्पति में ईश्वर का अंश मानते हैं। उन्हें भी भोजन पानी तथा हवा की उतनी ही जरुरत होती है जितनी मनुष्य को। हम पीपल के वृक्ष की पूजा करते हैं क्योंकि वह सूर्य की रोशनी में ऑक्सीजन देता है तथा कार्बन डाई आक्साईड सोख लेता है। हम आंवले की वृक्ष की पूजा करते है जिससे हमें अमृत फल आंवले की प्राप्ति होती है। केले, तुलसी की पूजा करते है लेकिन जब किसानों से उपजाउ जमीन सरकार अधिग्रहण करके रियल स्टेट के हाथों मुँह मागी कीमत पर बेचती है तो वह कितनी संवेदनहीन हो जाती है। उसे न तो किसानों का दर्द है न हरे-भरे पेड़ों के कटने का। क्या यह विलासी विकास रोबोट का रूप नहीं लेता जा रहा?
बाजार विदेशी सामानों से भरे पड़े हैं जिसको इस्तेमाल करो और फेंकों, यह सभी जानते है। यह सामान जल्दी खराब हो जाते है तो इनके पुर्जे बाजार में नहीं मिलते, नहीं ठीक करने वाले प्रशिक्षित कारीगर ही है, ऐसे सामान के ढेर लग रहे है, जिसको ठिकाने लगाना एक समस्या बन चुकी है। आंकड़े बताते है कि भारत में प्रतिवर्ष 1,38,888 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा इकट्ठा होता है। इसके अलावा 38,888 टन विदेशों अवैध रूप से आ रहा है।
कहते है कि मोटापा और दुबलापन दोनों ही खतरनाक है। यह बात केवल शरीर के स्वास्थ्य के लिए जितनी सही है उतनी ही सामाजिक विषमता में भी उतनी लागू होती है। यदि भ्रष्टाचार का मोटापा पूंजीपति कम करें तो आम आदमी की जरुरतें पूरी करने के लिए जादू की छड़ी या अलाउद्दीन का चिराग ढूंढने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मंदिरों में करोड़ों के नगद और सोने के आभूषण चढ़ाने से यह मोटापा दूर नहीं होगा। जीते-जागते इस विश्व में 2 अरब चालीस करोड़ बाल गोपालों की और बढ़ाया गया तुम्हारा एक कदम, तुम्हें वह खुशी देगा जो खुशियाली से तुम्हें नहीं मिला, तुम्हे रिमोट से मुक्ति मिल जायेगी।
मांसाहारी और शराबी को पापी कहना महापाप है। हमें ऐसे हालात बनाने होंगे कि लोग मांसाहारी और शराबी न बने। मेरा विश्वास है कि ‘‘गौ हत्या बन्दी और शराब बंदी लागू न होने में भ्रष्ट विलासिता की सोच है।’’
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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी
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