बलात्कार..... बलात्कार....... बलात्कार..........आखिर कब तक ?
"मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी
मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी
बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं
क्या लड़की हूँ,
बस इसी लिये गुनहगार थी मैं"
मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी
बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं
क्या लड़की हूँ,
बस इसी लिये गुनहगार थी मैं"
दिनांक 27.11.2019 को मदद के बहाने हैदराबाद की लेडी डॉक्टर का रेप और मर्डर किया गया | हम लड़ते रहे सेकुलरिस्म के नाम पे। मुस्लिम की बेटी है तो हम आवाज उठाएंगे। हिंदू की है तो वो आवाज उठाएंगे। शर्म आनी चाहिए ऐसे रक्षकों को, ऐसे समर्थकों को। बेटी या बेटा धर्म के अनुसार नहीं होता। अगर बेटी या बेटा मेरा है तो आपका भी है, आपका है तो मेरा भी है। सब मिलके आवाज उठाओगे तभी बलात्कार ( Rape ) रोक पाओगे।
हम ऐसे समाज में ऐसे हैवानो के बीच रहते हैं, जो मुश्किल में फंसी हमारी बहन बेटियों पर बस मौके की तलाश में घात लगाए बैठे हैं | वर्षों-वर्ष दशकों-दशक न हमने कुछ सीखा न हमारी व्यवस्था ने कुछ किया। हर बार वही चीख, वही वहशीपन, वही गुस्सा फिर वही ख़ामोशी। फिर वही समर्थन में कैंडल मार्च, फिर वही समर्थन में सोशल मीडिया में डीपी लगाना, फिर व्यवस्था को कोसना। आखिर कब तक?
बलात्कार ( Rape ) के प्रकारों को अनेक वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। जिसमे सबसे खतरनाक अनजान के द्वारा बलात्कार ( Rape ) माना गया है।
प्रसिद्ध पुस्तकें
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एक रिपोर्ट के अनुसार 63 % सेक्सुअल असाल्ट की रिपोर्ट ही नहीं लिखाई जाती। जिसे अभी वर्तमान में #MeeToo कैंपेन के जरिये एक नयी उम्मीद मिली। सिर्फ 12 % चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज ही रिकॉर्ड होते हैं। बलात्कार के 2 से 10 % तक गलत केस भी दर्ज हुए हैं।
अगर बात करें बलात्कार ( Rape ) रिकॉर्ड की तो उपलब्ध डाटा के अनुसार बलात्कार ( Rape ) के प्रतिशत में कमी तो आयी किन्तु सिर्फ नाम मात्र की। दरअसल हमारा समाज, सरकारें, सुरक्षा सब वही का वही है। बात सिर्फ अपने देश की नहीं है बलात्कार ( Rape ) का रिकॉर्ड प्रत्येक देश का ख़राब रहा है। बलात्कार ( Rape ) जैसे मामलों के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की याद भी हमें 2012 में निर्भया केस के बाद आयी। सही मायने में शायद ये कार्यवाही तब भी न होती अगर निर्भया केस के बाद जनजागरण न हुआ होता। किन्तु हमारा फिर से खामोश हो जाना हमें फिर से उसी अँधेरे में ले जाता जाता है। जिस अँधेरे को दूर करने के लिए हम कैंडल मार्च करते हैं। क्यों हम जाग के सो जाते हैं ? ये हमे सोचना होगा। फिर से जनजागरण की आवश्यकता है। फिर से
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