"बापू" महात्मा गांँधी के 150वीं जयंती, हमारे आस-पास भी खूब याद किये गये।
जेल के कैदी भी बापू के प्रिय भजनों को गाकर आत्मसंतोष महसूस किये। 'गाँधी विचार पदयात्रा', सरकार का, गांँधीजी के गाँव विकास की परिकल्पना को साकार करने का प्रयास। 'गाँधी विचार सद्भावना यात्रा गाँव से विधानसभा तक', ग्रामीण और शहरी मोहल्लों में निवासरत घरेलू महिलाओं की पहल।
'सिंगल यूज प्लास्टिक' - 'नो प्लास्टिक', 'बापू दर्शन और भिलाई' यहाँ के कार्पोरेट घराने और इनमें काम करने वाले लोगों की जज्बात।
इन कार्यक्रमों के बाद कितना बदलाव होगा या नहीं यह बाद का विषय है, लेकिन यह देखकर ऐसा लगता है, कि आज भी हो रही है असली गाँंधी दर्शन की तलाश। भारत के राष्ट्रपिता "बाापू" महात्मा गांँधी जी द्वारा अंग्रेजी में लिखे गए समाचार पत्र यंग इंडिया, गुजराती में नवजीवन, हिंदी में नवजीवन साप्ताहिक समाचार पत्र। यंग इंडिया और नवजीवन 1919 से 1932 तक प्रचलन में थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन पर ब्रिटिश सरकार का दस्तावेज-1930, अंग्रेजी में साप्ताहिक पत्र हरिजन, गुजराती में हरिजन बंधु 1933 से गांँधीजी की अन्तिम अवधि तक। गाँधीजी का पत्र -1933, 1936 से गाँधीजी के अवसान तक। अंग्रेजी और हिंदी में मासिक पत्र ग्राम उद्योग पत्रिका। गाँधी जी के खिलाफ ब्रिटिश सरकार के विभिन्न पत्रक। कवर पेज में गाँधीजी की विदेशी पत्रिका-टाइम पत्रिका (यूएसए) 1930, इलुस्ट्रेशन पत्रिका (फ्रेंच) 1931, ला-रशिया इलुस्ट्री मैगजीन (रूस) 1931, मुंडो पत्रिका (स्पेनिश) 1946। ले-पेटिट जर्नल ऑफ 1931 (फ्रांँस), प्रो-फिलमारिया पत्रिका 1931 (इटली) एवं न्यू वीक मैगजीन ऑफ 1947 (यूएसए) का समाचार सप्ताह पत्रिका।
यह सब एक मायने में गाँधी साहित्य है। जिसका अध्ययन और जीवन में इसे उतार पाना ही असली गाँंधी दर्शन को प्रासंगिक करता है। यह आज भी प्रेरणादायी है। पिछले एक सप्ताह से देश के कई भागों में गाँधी जी की 150वीं जयंती पर विभिन्न रोचक-शिक्षाप्रद कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है। यहाँ यह कहना लाजमी है कि, किसी भी कार्यक्रम को किसी अन्य नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि सभी कार्यक्रमों में गाँंधी दर्शन हो। इस काम में छत्तीसगढ़, भिलाई, रायपुर भी पीछे नहीं रहा है। 02 अक्टूबर से 09 अक्टूबर तक यहाँ गाँधी बापू किसी ना किसी कार्यक्रम के रूप में याद किये जाते रहे। दुर्ग के जेल में कैदी भी बापू को याद किये बिना नहीं रह सके।
गाँधी विचार सद्भावना यात्रा,
गाँव से विधानसभा तक ;
महिला-कमांडो द्वारा -
छत्तीसगढ़ के एक छोटे से कस्बे गुण्डरदेही से विभिन्न जिलों से आए महिला-कमांडो के रुप में ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी मोहल्लों में जागरूकता लाने का प्रयास कर रही महिलाओं की टीम ने 24 अलग-अलग गाड़ियों में 'गाँधी विचार सद्भावना यात्रा' विधानसभा तक पूर्ण किया।
इस कार्यक्रम को विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. चरणदास महंत की सहमति मिली यह ग्रामीण महिलाओं के उत्थान की दिशा में मील का पत्थर माना जा सकता है। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने 02 और 03 अक्टूबर को विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया था, जिसमें महिला-कमांडो की बात विधानसभा तक पहुँचना एक अनोखा कार्य रहा। जिसमें 110 किमी के सफर में, विश्व शांति, नशामुक्ति, स्वच्छता, बालिका शिक्षा आदि विषयों पर गांँधीजी के गाँव विकास की परिकल्पना को साकार करने सद्भावना का संदेश देते यह रैली निकाली गई। जहाँ विधानसभा स्थित एक भवन में विधानसभा अध्यक्ष डाॅ. चरणदास महंत, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे के साथ मंच में महिला-कमांडो की नेतृत्व करने वाली, पद्मश्री शमशाद बेगम ने महिला-कमांडो के विभिन्न गतिविधियों को रखा।
यह बताया गया कि, यह 231 महिलाओं की उपस्थिति की बात नहीं छत्तीसगढ़ के 14 जिलों में सामाजिक सद्भावना के लिए काम कर रहे 65,000 महिलाओं की बात है। इसे सभी 28 जिलों तक पहुँचाना है और सभी छत्तीसगढ़ियों को जोड़कर गाँव विकास के गांँधीजी के सपने को साकार करने के प्रयास किए जाने हैं। इस संदेश को छत्तीसगढ़ के मंत्रीमंडल के सभी सदस्य और विधानसभा के सदस्यगणों की उपस्थिती में बतलाया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गाँधी के 150वीं जयंती के अवसर पर देशवासियों से “सिंगल यूज प्लास्टिक” के उपयोग को पूरी तरह समाप्त करने का आह्वान किया है।
उन्होंने वर्ष 2022 तक इस एकल उपयोगी प्लास्टिक का प्रयोग सम्पूर्ण रूप से समाप्त करने का महती लक्ष्य निर्धारित किया है।
इस परिप्रेक्ष्य में इस संकल्प को पूरा करने के लिए समग्र योगदान देते हुए भिलाई की इस्पात बिरादरी ने सदैव की ही भांति राष्ट्र निर्माण व विकास में अहम् भूमिका निभाने के अपने संकल्प को पूरा करने राष्ट्र के मजबूती के लिए जहाँ श्रेष्ठ उत्पाद उपलब्ध कराये जातेे हैं वहीं अपने राष्ट्र को 'सिंगल युज प्लास्टिक से मुक्त' करने के लिए फिर से आगे आए हैैं।
भिलाई सदैव ही एक सकारात्मक पहल के लिए जाना जाता है। आज “सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त” अभियान में भी भिलाई पूरे देश में एक रोल माॅडल के रूप में अपनी पहचान स्थापित करेगा।
यह जानना लाजमी होगा कि प्लास्टिक बायो-डिग्रेडेबल नहीं है। केवल कुछ ही प्रतिशत “सिंगल यूज प्लास्टिक” की रीसाइक्लिंग हो पाती है। इसके जलने से जहाँ विषैली गैस वायु को प्रदूषित करती है, वहीं इसका कचरा पानी में मिलकर जल को भी प्रदूषित करता है। खाद्य सामग्री के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँचकर हमारे स्वास्थ्य को गम्भीर नुकसान पहुँचाता है। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक के थैलियों में फेंकी गई खाद्य सामग्री को हमारे पालतू जानवर प्लास्टिक सहित खा रहे हैं, जो उनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इसे नष्ट करने की दिशा में जो भी प्रयास किया जा रहा है वह पर्यावरण को भी प्रदूषित कर रहा है। यही वजह है कि आज 'सिंगल यूज प्लास्टिक' हमारे जीवन के लिए घातक हो गया है। भारी मात्रा में प्रयुक्त “सिंगल यूज प्लास्टिक” आज वेस्ट मैनेजमेंट के लिए भी एक गम्भीर समस्या बन चुकी है।
विदित हो कि आज प्लास्टिक के कचरे ने मानव जीवन के समक्ष अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न की है। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए एक भंयकर खतरे के रूप में सामने आया है। आज प्लास्टिक के प्रयोग ने जहाँ जल, थल और नभ को प्रदूषित कर पृथ्वी के जीवन श्रृंखला को बाधित किया है वहीं प्लास्टिक के कचरे का निपटान की समस्या विकराल रूप लेते जा रही है। ऐसे में भारत ने प्लास्टिक के विरूद्ध एक वैश्विक जंग का ऐलान कर दिया है। इसकी शुरूआत हम अपने देश से कर रहे हैं। आज देश के प्रत्येक नागरिक को “नो-प्लास्टिक” कहना होगा।
भिलाई के इस्पात बिरादरी का यह संकल्प है - “नो-प्लास्टिक” भिलाई ने यह प्रतिज्ञा लिया किः-
(1) हम “सिंगल यूज प्लास्टिक” का उपयोग नहीं करेंगे।
(2) साथ ही अन्य लोगों को भी “सिंगल यूज प्लास्टिक” के उपयोग करने से रोकेंगे।
(3) प्लास्टिक के कैरी बैग की जगह हम जूट, कपड़े व कागज के बने थैलों का उपयोग करेंगे।
(4) प्लास्टिक के कचरे को जलाकर नष्ट करने का प्रयास नहीं करेंगे।
(5) प्लास्टिक के बोतल गिलास थर्मोकोल की प्लेटों का उपयोग नहीं करेंगे।
(6) पानी पीने व भोजन करने हेतु स्टील की बोतल, प्लेट्स व स्टील के बने बर्तनों का प्रयोग करेंगे। सार्वजनिक कार्यक्रमों में हम भोजन चाय और पानी परोसने के लिए पत्तल और कुल्हड़ का उपयोग कर सकते हैं।
(7) हम “सिंगल यूज प्लास्टिक” के खतरों से समाज को अवगत कराकर उन्हें जागरूक करने में सहयोग करेंगे।
(8) हम प्लास्टिक से बने वस्तुओं का हर संभव त्याग करेंगे।
(9) हम अपने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि स्वरूप प्लास्टिक मुक्त भारत सौंपेंगे।
मैं भिलाईवासियों से अपील करता हूँ कि वे “सिंगल यूज प्लास्टिक” का उपयोग को त्याग करें और प्लास्टिक के खिलाफ इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुहिम को सफल बनाने में योगदान दें।
महात्मा गांधी की150वीं जयंती पर “बापू - दर्शन और भिलाई” पर आधारित प्रदर्शनी और संयंत्र के सीईओ अनिर्बान दासगुप्ता की घोषणा, भिलाई के “कलामंदिर” को “महात्मा गाँधी कलामंदिर" नया नाम दिया जाना। भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा किये गये सामाजिक कार्यों को गाँधी जी के विचारों से जोड़कर प्रदर्शित करने का यह प्रयास भी बेहद प्रसंशनीय रहा है। यह खुशी की बात है कि संयंत्र का कार्य गाँधी जी के विचारों से ओतप्रोत है।
“बापू - दर्शन और भिलाई” पर आधारित प्रदर्शनी, महात्मा गाँधी के अपने सपनों के भारत में जिस दृष्टि की कल्पना की थी उसमें व्यापकता, ग्रामीण विकास, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गाँवों की सफाई, गाँवों का आरोग्य और समग्र ग्राम विकास, स्वच्छता, स्वास्थ्य, समानता, स्वावलंबन, स्वरोजगार, शिक्षा, नैतिक शिक्षा, कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण, वृद्धजन सेवा, लोक कला जैसे विषय गाँधी जी के सबसे प्रिय विषयों मे शामिल है। गाँधी जी के इन प्रिय विषयों पर, भिलाई इस्पात संयंत्र ने अपने स्थापना काल से लेकर अब तक अनेक कार्य किये हैं। आज गाँधी जी के 150वीं जयंती पर भिलाई इस्पात संयंत्र के जनसंपर्क विभाग ने संयंत्र के उन सभी कार्यों को एकत्र कर इस महत्वपूर्ण प्रदर्शनी का आयोजन किया है।
आज महात्मा गाँधी जी के प्रति सम्पूर्ण इस्पात बिरादरी द्वारा सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह प्रदर्शनी, संयंत्र द्वारा किये गए उन समग्र प्रयासों को दिखाने का एक प्रयास है जो गाँधी जी के विचारों को यथार्थ की धरातल साकार कर रहा है। भिलाई इस्पात संयंत्र ने गाँधी जी के सपने को साकार करने की दिशा मे निरंतर प्रयास किया है और यह प्रयास भविष्य मे भी जारी रहेगा यह इनका सार्वजनिक संकल्प भी है। जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वच्छता ही सेवा के तहत ‘नो प्लास्टिक’ कार्यक्रम का आयोजन। सेल अध्यक्ष की कार्मिकों से सफाई को दिनचर्या का हिस्सा बनाने को अपील देश की सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (सेल) के भिलाई में महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती को “स्वच्छता ही सेवा” के रूप में मनाया गया।
गाँधी विचार पदयात्रा....
इस तरह से गाँधी जी को याद करें तो भी अच्छा लगता है। जैसाकि आमतौर पर होता है गाँधी जी की 150 वीं जयंती पर बाइक रैली भी हो सकती थी। हाथों में तख्तियां लिए युवा तेजरफ्तार बाइक में कुछ स्लोगन गाते शहर में निकल पड़ते। इनके बिल्कुल बगल से गुजरते लोग इन्हें निकलते देख शायद नीरज की अमर पंक्तियाँ कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे, गुनगुना कर अपने रास्ते निकल जाते। इतनी आपाधापी से भरे वक्त में क्या कुछ हो पाता, फिर कैसे युवा पीढ़ी को गाँधी जी से जोड़ने की बात हम सोच पाते।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ शासन ने धमतरी जिले के कंडेल से गाँधी चौक रायपुर तक 'गाँधी विचार पदयात्रा' निकालने का निर्णय किया। यह पदयात्रा छह दिनों तक कंडेल से रायपुर के बीच अनेक गाँवों से गुजरते हुए गाँधी चौक, रायपुर तक पहुँचेगी। यह विचार पदयात्रा भी गाँधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। गाँधी जी के आदर्शों और विचारों के मुताबिक शासन प्रणाली चलाने की दिशा में यह बड़ा कदम हो सकता है।
कंडेल से उठाया हुआ यह पहला कदम सुराजी गाँवों के छत्तीसगढ़ शासन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। जैसाकि पुरानी चीनी कहावत है कि,
"हजार मील लंबे सफर की शुरूआत एक छोटे से कदम से होती है।"
यह पदयात्रा कई मायने में संकेत है कि सरकार किस प्रकार काम कर रही है। यह 09 अक्टूबर तक छह दिन पूरे समय में गाँवों में रहकर ग्रामीणों से सीधे संवाद से शासन को योजनाओं के जमीनी क्रियान्वयन की स्थिति की जानकारी मिलेगी। ग्रामीणों को मुख्यमंत्री से सीधे संवाद का अवसर मिल सकेगा। अपनी बातें सीधे सहज रूप से बताने का अवसर भी सरकार को उपलब्ध होगा। यह गाँव से निकली यात्रा है जो राजधानी में समाप्त होगी।
यह यात्रा गाँधी जी के संघर्ष को याद करने की दृष्टि से भी खास होगी और उनके विचारों को भी अपनाने की दृष्टि से भी उपयोगी होगी। यह पदयात्रा यह बताएगी कि संघर्ष का रास्ता ड्राइंग रूम से नहीं खुलता, संघर्ष का रास्ता और बदलाव का रास्ता पगडंडियों से खुलता है। यह वर्तमान में भी दांडी यात्रा के अनुभव को महसूस करने का क्षण भी हो सकता है। जब गाँधी जी ने दांडी से यात्रा की शुरूआत की तो नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने इसकी तुलना नेपोलियन की एल्बा से पेरिस की यात्रा से की थी। उस समय ब्रिटिशर्स ने इसे काफी हल्के तौर पर लिया था और उस जमाने में स्टेट्समैन ने छापा था कि क्या एक सम्राट को केतली में पानी उबाल कर हराया जा सकता है। फिर स्टेट्समैन ने यह भी छापा कि गांधी महोदय तब तक समुद्री जल को उबाल सकते हैं जब तक उन्हें पूर्ण स्वराज नहीं मिल जाता। यात्रा जब शुरू हुई और जिस तरह लोग जुड़ते गए, वो ऐतिहासिक हो गई । न्यूयार्क टाइम्स ने रोज इसकी रिपोर्टिंग की। मार्टिन लूथर किंग तो इतने अधिक प्रभावित हुए कि भविष्य में उनके मार्च आफ फ्रीडम की आधारशिला भी इसी घटना से तैयार हुई। यह ऐतिहासिक घटना थी और आज बरसों बाद छत्तीसगढ़ में सविनय अवज्ञा आंदोलन की स्मृति में कंडेल से रायपुर तक पदयात्रा भी लोगों को स्मरणीय रहेगी। हम लोगों ने गाँधी जी का समय नहीं देखा, इस तरह की कोशिश और पहल से हम उसे अपने लिए मूर्त कर सकते हैं। हम कल्पना कर सकते हैं कि स्वराज को प्राप्त करने का हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का संघर्ष कितना दृढ़ रहा होगा।
पदयात्रा का शीर्षक 'विचार पदयात्रा' रखा गया है। जब हम गाँधी जी को श्रद्धांजलि देते हैं तो उनके प्रति हमारा यह दायित्व होता है कि हम उनके विचारों को अपनाने की कोशिश करें। उनके उद्देश्यों को समझने की कोशिश करें। गाँधी जी के विचारों के अनुरूप सुराजी ग्राम बनाने का लक्ष्य लेकर सरकार ने अनेक योजनाएँ तैयार की जा रही है। हमारे गाँव स्वावलंबी हो सके, यह महात्मा गाँधी का सपना था। धीरे-धीरे यह टूटता गया और आज गाँव शहरी तंत्र पर पूरी तरह आश्रित होते जा रहे हैं। गाँव पुनः स्वावलंबी हो सके, विकास का ऐसा रास्ता चुने जिससे धरती की संपदा सहज रूप से सुरक्षित रह सके, सुराजी गाँव इसी दिशा में किया गया कार्य है।
गाँधी जी के साथ ही छत्तीसगढ़ के पंडित सुंदर लाल शर्मा भी इस वक्त याद आते हैं। जिन्होंने गाँधीवादी तरीकों से छत्तीसगढ़ में सत्याग्रह की शुरूआत की। कंडेल आंदोलन ने केवल छत्तीसगढ़ में ही स्वतंत्रता संग्राम की दिशा तय नहीं की अपितु पूरे देश को संदेश दिया कि किस प्रकार सत्याग्रह से साम्राज्यों को भी झुकाया जा सकता है। गांधी जी की 150वीं जयंती पर कंडेल से पदयात्रा निकालने के निर्णय से बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता था। उस पुण्यभूमि से अपनी सुराजी यात्रा की शुरूआत करना जो छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता संग्राम की प्रयोगशाला रही और जिसकी अंततः परिणति यह रही कि हम आजाद देश में साँस लेते हैं। दांडी यात्रा और कंडेल सत्याग्रह के पलों के वक्त देश गुलाम जरूर था लेकिन गाँधी जी और पंडित सुंदर लाल शर्मा जैसे नायकों ने भारतीयों को मानसिक रूप से आजाद कर दिया था। उस जमाने में लोगों की मनःस्थिति कैसी थी, यह जानना चाहें तो कोई भी कंडेल से निकली इस गाँधी विचार पदयात्रा में भाग ले सकते थे।
- घनश्यामदासवैष्णव बैरागी
( फीचर्स-लेखक )
भिलाई ( छत्तीसगढ़ )
08827676333
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