प्राथमिक शिक्षा को सुधारने के लिए ज्यों-ज्यों प्रयास किये गए त्यों त्यों प्राथमिक शिक्षा की दुर्गति होती चली गयी।
आजादी के बाद और करीब करीब 1970 के अंत तक प्राथमिक शिक्षा के प्रति जनता में एक अच्छा सन्देश जाता था।
जब शिक्षा जिला परिषद् के अधीन थी तब प्राथमिक शिक्षा का स्तर आज की तुलना में बहुत ही बेहतर था। बेसिक शिक्षा परिषद् के गठन के बाद जहाँ शिक्षकों की सेवा दशाओं में निरन्तर सुधार हुआ वहीँ दूसरी ओर शिक्षा की गुणवत्ता में निरन्तर ह्रास होता चला गया और आज स्थिति यह है कि अभिभावकों और बच्चों ने प्राथमिक से अपना मुख मोड़ लिया है।
जब से शिक्षा समवर्ती सूची में सम्मिलित हो गई तब से राज्य का आर्थिक भार तो कम हो गया लेकिन राज्य ने कभी भी प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता की ओर ध्यान ही नहीं दिया। राज्य सरकार ने बैक डोर से अयोग्य शिक्षकों की भर्ती के निमित्त शिक्षा मित्रों की भर्ती कर ली। यह शिक्षा मित्र स्थानीय ग्राम सभा द्वारा नियुक्त किये गए। इन शिक्षा मित्रों में बहुत से शिक्षा मित्र दमंग / प्रभावशाली परिवारों से सम्बंधित थे ऐसे लोग सप्ताह में या महीने में जाकर केवल हस्ताक्षर कर मानदेय प्राप्त करने लगे। दमंग / प्रभावशाली / महिला शिक्षा मित्रों को विद्यालय में समय वद्ध करने में प्रधानाध्यापक अपने को असमर्थ पाने लगे। बस यही से प्राथमिक शिक्षा की दुर्गति प्रारम्भ हो गयी।
जब स्थानीय शिक्षा मित्र प्रधानाध्यापकों पर भारी पड़ने लगे तो प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों ने भी विद्यालय आने की शिक्षा मित्रों की शैली अपना ली और विद्यालय आने के दिन निर्धारित कर लिए।
कुछ शिक्षकों ने प्रधानाध्यापकों से, कुछ ने खंड शिक्षा अधिकारीयों से सांठ गांठ कर उपस्थित होने के दिन निर्धारित कर लिए।
समय की गति और विभागीय अधिकारीयों की सांठ - गाँठ से शिक्षकों ने कार्य स्थल से सैकड़ों किलो मीटर दूर आवास बना लिए।
प्राथमिक शिक्षा में मनचाहा ब्लॉक और स्कूल पाने के लिए रेट भी निर्धारित हैं।
वर्तमान में जो प्रधानध्यापक स्वयं अनियमित हैं और अनियमित प्रधानाध्यापक अपने सहायकों पर कैसे नियंत्रण पा सकते हैं? यह एक गंभीर प्रश्न है ?
कई स्कूलों में जब अनियमित शिक्षक छात्रों की पिटाई करते हैं तब उन्हें अभिभावकों के विरोध का सामना करना भी पड़ता है।
शिक्षक संघ भी सचेत है उसने शैक्षिक गुणवत्ता के गिरते स्तर के लिए संसाधन की कमी को जिम्मेदार ठहराया।
विद्यालयों के शिक्षण कक्षों,शौंचालय तथा परिसर की सफाई कैसे हो यह भी सरकार को हर कीमत पर सुनिश्चित करना है।
वर्तमान में विद्यालयों की भौतिक स्थिति अच्छी है संसाधन भी पर्याप्त है फिर क्या कारण है कि छात्रों और अभिभावकों का प्राथमिक विद्यालयों से मोह भांग हो गया है और निरंतर छात्र संख्या गिर रही है।
इधर कुछ वर्षों से शैक्षिक सुधार और निरीक्षण के निमित्त प्रत्येक ब्लॉक में 10 एन पी आर सी , 4 ए बी आर सी ,1 बी आर सी और एक खंड शिक्षा अधिकारी नियक्त है लेकिन यह केवल अपनी - अपनी सर्विस कर रहे है लेकिन बच्चों की किसी को भी परवाह नहीं।
एक अभिभावक ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय में बच्चे भेजना सुरक्षित नहीं है। बच्चे आपस में लड़ सकते है शिक्षक समय पर आते नहीं हैं।
शिक्षक का पद अन्य कर्मचारियों से भिन्न है जहाँ अन्य कर्मचारियों के पद आर्थिक भ्रष्टाचार से जुड़े होते हैं। उन्हें अन्य जिलों में स्थानांतरित भेज कर भ्रष्टाचार में कुछ कमी की कल्पना की जा सकती है। वहीँ शिक्षक का पद समय की नियमितता से जुड़ा हुआ है।
वर्तमान में निरीक्षण प्रणाली इतनी लचर है जिसका कोई अर्थ ही नहीं।
हमारा कहने का यह आशय नहीं है कि सभी शिक्षक अनियमित हैं कुछ ऐसे भी शिक्षक है जो समय पालन के साथ साथ शिक्षण कार्य में रूचि भी रखते हैं लेकिन ऐसे शिक्षकों की संख्या कम है।
प्राथमिक शिक्षा से लोगों का मोह भंग का एक कारण और भी है और वह है गली -गली में गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों का खुलना।
सुझाव
1 - विद्यालयों का सघन निरीक्षण
2 - शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए स्थानांतरण करना कोई विकल्प नहीं है।
3 - शिक्षकों और छात्रों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित हो।
4 - जहां तक संभव हो महिला शिक्षकों को रोड के किनारे ही विद्यालय आवंटित हों | जिससे समय पर आने में किसी प्रकार का बहाना न हो।
5 - विद्यालयों में शिक्षण कक्षों , शौंचालय तथा परिसर की सफाई समय पर अवश्य सुनिश्चित हो।
5 - विद्यालयों में शिक्षण कक्षों , शौंचालय तथा परिसर की सफाई समय पर अवश्य सुनिश्चित हो।
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Location: कानपुर, उत्तर प्रदेश, India
Introduction* जन्म : 1943 ,ग्राम :इंजुआरामपुर,कानपुर,उत्तर प्रदेश *शिक्षा :परास्नातक (हिंदी ),कानपुर विश्वविद्यालय कानपुर *व्यवसाय : :सेवा निवृत -२००३ *
पुरस्कार :शिक्षक पुरस्कार -१९९८
Interests: हिंदी साहित्य, राजनीति, Social issues, Indian culture, .Indian Politics, Ancient culture,Ancient literature, Sanskrit literature
Favourite Books: गीता, रामायण, रामचरितमानस, कामायनी
Introduction* जन्म : 1943 ,ग्राम :इंजुआरामपुर,कानपुर,उत्तर प्रदेश *शिक्षा :परास्नातक (हिंदी ),कानपुर विश्वविद्यालय कानपुर *व्यवसाय : :सेवा निवृत -२००३ *
पुरस्कार :शिक्षक पुरस्कार -१९९८
Interests: हिंदी साहित्य, राजनीति, Social issues, Indian culture, .Indian Politics, Ancient culture,Ancient literature, Sanskrit literature
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