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गंगा-दीप | Lekhak Ki Lekhni

Ganga Deep

भारती गंगा को मां के समान पूजनीय मानती है, वन्दनीय मानती है। गाय को पूजनीय मानती है। प्रातःकाल के समय पत्तों के दोनों में पुष्प और दीपक को रखकर वह गंगाजी में प्रवाहित करते हुए कामना करती है कि गंगा समृद्धि को बढ़ाये तथा निरन्तर कर्म का सन्देश दे, परोपकार का संदेश दे। उस दोने में रखा हुआ दीपक गंगा मां से पूछता है कि भारत में लोग कितनी श्रद्धा और भक्ति से तुम्हारे पास आते हैं तथा अपने चित्त को निर्मल करते है फिर भी दुनिया में दो करोड क्षय रोगियों के आधे भारत में है। विश्व के अट्ठासी करोड़ गरीब लोगों में से दस करोड़ से भी अधिक भारत में गरीबी से भी बुरी दशा में है। पांच करोड़ से काफी अधिक लोग भूख और कुपोषण के शिकार हैं। विश्व में सबसे अधिक निरक्षर भारत में है। करोड़ों लोग झुग्गी-झोंपड़ी में कीड़े-मकोड़ों सी जिन्दगी जी रहे हैं। विश्व बैंक का सबसे बड़ा कर्जदार भारत है। विदेशी मुद्रा के लिए भारत हर वर्ष अरबों मेंढकों को चीर कर विदेश भेजते हैं। गोमांस का निर्यात किया जाता है। भारत सरकार को सबसे अधिक आय शराब, सिनेमा और सिगरेट-तम्बाकू से होती है। भारत के मुठ्ठीभर लोग अमीर फल-फूल रहे हैं। बाकी जनता कष्टमय जीवन जी रही है। क्या हम आज भी भारत भूमि को तपोभूमि और देव भूमि कह सकते हैं? वेदों का ज्ञान देने वाली संस्कृत सी सबसे वैज्ञानिक भाषा देने वाली, स्वर्ग से सुन्दर अवतार भूमि कह सकते हैं?

गंगा बोली कि भारत की जलवायु तथा भूगोल विश्व में सबसे उत्तम है। यहां की छः ऋतुएं, प्राकृतिक सुन्दरता के साथ ही फल-फूल, मेवों में औषधिय गुण होते हैं। इसी भूमि पर देव वाणी संस्कृत और जनवाणियों को समान आदर मिलता है। सभी जातियां, धर्मों, संस्कृतियों को इसने गले लगाया है। लेकिन अपने आप को नहीं भूलाया है। जब कोई अपनी आंख बन्द कर ले तो उसे प्रकाश कैसे दिखाई दे सकता है? जहां-जहां अज्ञान है वहां आत्म विस्मृति है। अपनी जन्मभूमि तथा अपनी मातृभाषा से प्रेम करना, अच्छाई का आदर करना ही प्रगति का मूलमंत्र है। जलवायु के अनुसार खान-पान और रहन-सहन उपयोगी होता है। आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा का ही अंग है। हमारे आस-पास का पत्ता-पत्ता उपयोगी है। इसका ज्ञान प्राप्त करके जीवन दूसरों के लिए उपयोगी बनाना मानव धर्म है। कर्म बड़ा होता है, जाति नहीं। कर्म से ही जाति का बोध होता है। सभी उपयोगी कर्म जिनसे दूसरों को हानि न हो, वन्दनीय है। सभी नदियों का जल जीवन दायिनी है। 

भारती एकटक दूर बहते हुए दीपक को देख रही थी और सोच रही थी गांधी जी ने अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए भारत को चरखे का महत्व समझाया था लेकिन वे भूल गये कि सदियों से भारत के घर-घर में गोपालन होता रहा है। गोपालन से पूरा परिवार कार्य में व्यस्त रहता है तथा कभी भूखा नहीं मरता। गोचर भूमि के कारण पर्यावरण भी शुद्ध रहता है। अब न तो गाये हैं और न ही गोचर भूमि दिखाई देती है। योजनाओं में शौचालयों के लिए करोड़ों रुपये दिए जाते हैं लेकिन सब कागज पर ही रहते हैं। आज खादी ग्रामाद्योग की दुकान ढूंढने पर भी नहीं मिलती लेकिन मांस, शराब, तम्बाकू, दवाईयों की दुकानें चप्पे-चप्पे पर मिलती है। गो सेवा की देवी कृपा लोग भूल रहे है और हजारों रुपये देकर दरबारों में कृपा ढूंढने जा रहे हैं। हम भूल जाते है कि मैले शीशे में कोई दैवी शक्ति साफ चेहरा नहीं दिखा सकती, समाज में पवित्रता जरुरी है। परिस्थितियों से न लड़कर केवल दैवी शक्ति के भरोसे टोने-टोटके करने वाले हताशा में आत्महत्याएं न करने लगे इसके लिए उन्हें समय रहते सचेत कर देना चाहिए। 

हमारी राजनैतिक पार्टियां आम आदमी की बात करती है लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि आम आदमी उस गले-फटे नोट की तरह है जो हर हाथ में जाता तो है लेकिन उसे तिरस्कार के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता केवल मछली बाजार की तरह चुनावों में वह जैसा भी है, स्वीकार कर लिया जाता है। 

हमारे देश में नीतियां भेदभाव को बढ़ाती है जिस देश में स्वतंत्रता पूर्व मेजर ध्यान चन्द ने हाकी को विश्व में स्थापित किया उसकी उपेक्षा करके क्रिकेट से करोड़ों कमाने और विज्ञापनों में नवाजे जाने का लोभ बढ़ाया जा रहा है। संविधान की उपेक्षा करके राज्य सभा के द्वारा उन्हें सांसद बनाने के बारे में सोच रहे हैं। भारत में योग्यताओं की कमी नहीं है। कोकर्ण रेलवे तथा मैट्रो का समयबद्ध कायाकल्प करने वाले इं. श्रीधरण के बारे में सभी दल क्यों नहीं विचार करते। अब राष्ट्रपति का चुनाव नजदीक है भारत में योग्य व ईमानदार व्यक्तियों की कमी नहीं है केवल हमें निष्पक्ष सोचना है। ‘‘मेरा विश्वास है कि गौ हत्या बन्दी और शराब बन्दी लागू न होने में भ्रष्ट विलासिता की सोच है।’’

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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी 
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