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अंगदान बजार की मांग है - Organ Donation is demand of market now a days | Lekhak Ki Lekhni

Hindi Article on Organ Donation

भारत के बाजारीकरण के दौर में बड़ी मांग अंगदान की उठ रही है। पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है। लेकिन आज जरूरत मानव अंगों की है। समाज का कौन सा पेशा है जो अनैतिक काम ने करके पैसा कमाने में न लगा हो भ्रष्टाचार ने गरीबी अमीर की बहुत बड़ी दीवार खड़ी कर दी हैं भिखारी तो भीख मांगता है लेकिन पैसे वाले किस मुंह से दान मांगने की बात करते है ये भूल जाते है कि बुरा आदमी उस समय बदतर हो जाता है जब वह साधु होने का ढोंग करता है। आज बाजार की जरूरत है आंकड़े बताते है आज भारत के हर तीन व्यक्ति में एक ब्लडप्रेसर का मरीज है हर दस व्यक्ति में एक मधुमेह का रोगी है यह सब हमारे खानपान और रहन सहन के नतीजे है भारत में हर साल एक लाख पचहत्तर हजार गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता है मधुमेह के कारण यकृत  (लीवर) के प्रत्यारोपण की आवश्यकता हृदय प्रत्यारोपण की पचास हजार की जरूरत है नैत्रहीनों के लिए एक लाख कार्निया के प्रत्यारोपण की है। यह सब कहां से लायें। पैसे वालों के लिए बड़े-बड़े अस्पताल है वहां अनैतिक रूप से कन्या भ्रूण हत्या करके अपना पेट भरने वाले गरीब लोंगो की किडनी चुरा कर कितनी पूर्ति कर  पायेंगे क्या कभी उन लोगों की सजा हुई है। यहां अनाज सड़ रहा है लेकिन गरीबों को खाने को नहीं मिलता क्या कभी किसी को दण्ड मिला है। भारत में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती है। जिसका मुख्य कारण शराब होता है। क्या शराब बन्दी लागू हुई है। हमें विदेशी नकल करने की राह दिखाई है विलासिता की जिन्दगी जीने की राह दिखाई है लोग एसी में सुबह दस बजे तक सोने के आदि हो गये है वे नहीं जानते कि उदय होता हुआ सूर्य हृदय रोग और रक्त हीनता को दूर करता है। यह सच है कि प्रजातन्त्र  का भवन रोजगार की नींव पर खड़ा होता है। जिस देश में बेरोजगारी की समस्या का हल नहीं होता वह अपने देश को समृद्धशाली नहीं बना सकता, भ्रष्टाचार को ही बढावा देता है हम यह भी जानते है कि संसार के पांच आर्थिक राक्षस मानवजाति को ग्रासित करने को तैयार खड़े है वे है। निर्धनता, अज्ञानता, बिमारी, गंदगी और बेरोजगारी आज का समाज का लक्ष्य केवल पैसा कमाना है ऐसे में अंगदान का सवाल खड़ा होता है वह भूल जाते है कि आज रोटी, वस्त्र, आश्रय और सुरक्षा के एवज में मनुष्य की चेतना गिरवी रख ली जाती है। हम विलासिता के शैतान को न्यौता देकर बुला तो लेते है लेकिन भूल जाते है उससे पिण्ड छुडाना कितना मुश्किल है आज दूरदर्शन पर सर्दी हो या गर्मी रोज खाओ अण्डे के विज्ञापन दिखाये जाते है महिलाएं मंगलवार, गुरूवार, शनिवार को व्रत रखती है पूर्णिमा, एकादशी, अमावस्या, संक्रान्ति पर पूजा पाठ करती है लेकिन टीवी देखकर बच्चे अण्डे खाने की जिद करते है क्या कभी संविधान का पालन करने वाले देखते है कि लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया जा रहा है। टीवी चैनल ने तो धन कमाना है यदि किसी को अश्वीलता या हिंसा से ठेस पहुंचती है तो वे दूसरे चैनल चलाये। 
आज समाज अपने जीवन का ढर्रा नहीं बदलना चाहता लोग जीवन को बढाना तो चाहते है सुधारना नहीं चाहते । गाडि़यों और सड़कों पर घंटो जाम लगा रहे हैं, सड़को कर मरमत का काम ठीक तरह से नहीं होता, छोटी उमर के बच्चों को स्कूटर लेकर दे देते है भागम भाग की जिन्दगी में दौड़ना लक्ष्य बना चुके है दिशा भूलते जा रहे है। 

उधर हम परमाणु बम्ब बना रहे और अंगदान की बात करते है सेना देश की रक्षा के लिए लड़ती है उसी के हथियारों में लोग दलाली खाकर घटिया समाज भर लेते है उन्हें कोई कुछ कहने वाला नही है। मिलावट खोर, बल्तकारी निडर होकर घूमते है उन्हें कानून का डर नही है न्यायालय कभी नहीं सोचता कि जो मुकदमे उनके पास आ रहे उनका निबटारा कब होगा। आतंकवादियों के सुरक्षा पर करोड़ों रूपये खर्च होते है और विदेशों से कर्जे पर कर्जा लिए जाते है चाहे उसका ब्याज चुकाना भी मुश्किल हो जबकि हम एक बार ईस्ट इंडिया कंपनी से धोखा खा चुके है फिर भी विदेशी पैसे की राह देखते है उन्हेें करो में घूट देते है पत्नी पति बड़े घरानों के लिए कायदे कानून अलग है आम आदमी जो गरीबी, बिमारी ओर मूर्खता मे भी अंगदान के लिए तैयार मिलेगा वे भूल जाते है किसी देश की शक्ति छोटे विचारों वाले बड़े आदमियों से नहीं किन्तु बड़े विचारो वाले छोटे आदमियों से बढती है। मेरा विश्वास है गौहत्या बन्दी और शराब बन्दी लागू न होने में "भ्रष्ट विलाःसिता की सोच" हावी है । 
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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी 
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