नमस्कार ........... ख़बरिया रूख़ आजकल अपने अल्हड़ से ढर्रे से अलहदा एक मेज़बान अंदाज में पेशे ऐ ख़िदमत हो रहा है । दरअसल ये अब एंकर के शर्ट की कॉलरों के नीचे टाई की गहरी जकड़न में खुद को दबोचे हुऐ ऊपर से एक मोटे कोट के कॉलर से दबा हुआ है । जो दिख रहा है वो इस तरह है कि आप देखेंगे तो आपको नजर आयेगा कि सबसे ऊपर जो महत्वपूर्ण है वो ये है कि शेम्पू किये गये बेहतरीन बाल और उसमें बाउंस अर्थात उछाल के लिये इस्तेमाल किये गये कंडीशनर तत्पश्चात उसमें चमक के लिये दुलारे गये सीरम के आग़ोश में लिपटे हुऐ ऐसे मेज़बान बाल हैं जो एक ताजनुमा नजर आते हैं । ललाट की सलवटों में ख़बरिया लालित्य ऐसा है कि आप देखेंगे तो आपको नजर आयेगा कि अब जो प्रश्न आपके जहन में रोपना है उसको रोपने का अंदाज ऐसा होगा कि उसे ललाट पर सलवटों के माध्यम से बयाँ किया जायेगा । अनन्य भाव भंगिमाओं से लबरेज़ चेहरे पर लाखों भंगिमाएँ चढ़ रही हैं गिर रही हैं उत्तर रही हैं और बिखर रही हैं । यह ख़बरिया रंगमंच के पार्श्व का वो अदृश्य संवाद है जिसे गढ़ने में संवेदनाओं के महलों में शालीन दासियाँ हुजूर के पेशे ऐ नज़र पान की गिलोरियों की रँगत को जो की हुजूर के होंठ की किनोर से लक़ीर बनकर निकली है । उसे अपने मख़मली दुपट्टों से हुजूर के चेहरे को निगाहें मौहब्बत और दुपट्टे की किनोर से जिस पेशेवर अंदाज में साफ़ कर रही हैं । कि मानो एक बारगी तो दरबार के ठीक बीच में अपने हुनर का लोहा मनवाने आयी तवायफ़ भी उनके इस बिछने और पेश होने के हुनर को देख दोहरी हुई जाती हैं ।
ख़ैर तो चेहरे की इन भंगिमाओं में जब क्लींन शेव चेहरे कई के दाढ़ीनुमां चेहरे उसमें पैबस्त गम्भीरता , गहन चिन्ता , जंगजू तैवर , दिखावटी निर्धारित विद्रोह , समाज के प्रहरी का मुखोटा , तरह तरह के जबरिया ख़बरिया नक़ाब और कोटि कोटि तैवर के साथ ख़बर को पेश किया जा रहा है तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो अनुसंधान , विश्लेषण , परिशोधन और सतही से लेकर शीर्ष छानबीन से निकले यह तथ्य एक ऐसा ऐतिहासिक दर्पण है । जिसे देखने का स्वर्णिम मौका आज जिस तरह सर्वसुलभ हुआ है । यह सिर्फ इनकी गहन तपस्या है परिश्रम है अन्यथा ये कहाँ पता लगने वाली बात थी । उसके बाद थोड़े टेढ़े होकर थोड़े सीधे आँखों में आँख डालकर , उसके बाद क्रोमा पर घूम फिरकर कहने के उस अंदाज में एक अदाकारी है जो उनके चिंतातुर होने को गहरे से दर्शाती है ।
आंगिक सम्प्रेषण की बेहतरीन अदाकारी नुमायाँ होती है जब आप हाथों को गौर से देखते हैं तो आप हाथों को नचाने का कठपुतली नुमां बयाँ करने का अंदाज काबिले गौर होता है । जब ऊँगली दिखाकर कोई बात कही जाती है तो आप एकदम सचेत हो जाते हैं कि दूसरों का तो पता नही पर ये बात मुझसे भी कही गयी है । जब हथेली की चारों उँगलियों को एक साथ करके और अंगूठे को को ऊपर करके हाथ को बारबार ऊपर से नीचे की और किया जाता है तो आप समझ रहे हैं कि इस बारे एक आप ही नही बल्कि सबको उस चिंतनीय स्थिति में एकीकृत होने के लिये कहा जा रहा है । कभी कभी ख़बर कहते कहते दोनों हथेलियों को बांधकर एकदम ऊपर की ओर खोलने मानो कबूतर उड़ाने के अंदाज में सम्प्रेषण किया जाता है ऐसी स्थिति से दर्शक भयभीत हो जाता है कि अब शायद ही इस बात का समाधान हो पाये । एकदम हथेली को खबर कहते कहते सीधे करके खोल देने का मतलब भी आपको यही कहने के लिये की वक़्त कम है आप संभल जाइये । कभी कभी तो आप डर जाते हैं जब दोनों हाथों को बांधकर उन्हें एकदम से खोल दिया जाता है और जोड़कर आपके आगे कर दिया जाता है । तब आप गहरे से चिंतित हो जाते है कि आखिर ये हो क्या रहा है । कभी कभी हाथों को एक दूसरे से रगड़ा जाता है तब आपको लगता है नही नही अभी बहुत उम्मीद बाकी है । आपके माथे पर चिंता की लकीरों के लिखने का गढ़ने का उन्हें नित्य प्रति उकेरने का बिना दर्द के भी ऐसी उकेरने का की वो बहुत दिनों तक दिखती ही रहे । यही हुनर यही अदाकारी का ये जो अंदाज है ये परकटिया स्क्रिप्टिया जूनून है उसे पेश करने का हुनर है यही तैवर है जो आपको रोज़ सज़ग कर रहा है कि हम ये अहसान कर रहे हैं ज़नाब कि कोई प्रहरी हो ना हो पर हम लोकतंत्र के वो सजग प्रहरी हैं जो आपके सार्वभौमिक अधिकारों की जंग को पुख़्ता कर रहे हैं ।
आपका
चन्द्रशेखर त्रिशूल
Shekharexpress@Gmail.com
9983094830
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