सुबह चार बजे लघुशंका के लिए उठा तो देखा बेटा मोबाईल पर लगा हुआ है। मन में चिंताओं के भाव उमड़ने लगे फिर सोचा शायद कोई आवश्यक कार्य है। खैर कोई नही मै दुबारा सो गया। सुबह के आठ बज रहे थे, बेटा अभी तक सो रहा था। जब जगाया उसे तो उठते ही वो मोबाईल में कुछ खोजबीन करने लगा। बड़ा आश्चर्य हुआ जो पुत्र उठते ही अपने से बड़ों के पैर छूता था। आज वो उठते ही मोबाईल में लग गया। अब तो ये उसका रोज का नियम बन चुका था। पिता होने के नाते चिंतित होना स्वाभाविक था। सोचा यदि पुत्र से सीधा प्रश्न किया तो शायद ठीक न रहे। अपने मित्र से पूछा भई ऐसा क्या है फोन में जिसके लिए हमारा पुत्र दिन रात एक किये हुए है। जवाब मिला भई मजा आता है इसमे। सब मित्र रिश्तेदार आपस में जुड़े रहते हैं। मोबाईल के बिना जीवन अधूरा सा लगता है ऐसा प्रतीत होता है जैसे दुनिया में सिर्फ एक मोबाईल ही है जो सुख दे सकता है। अब इच्छा हुई क्यो न मै भी एक फोन ले लूॅ। शाम को पहुॅच गए दुकान पर। दुकानदार ने बताया फ़ोन के तीन महीने इंटरनेट अनलिमिटेड फ्री है। सुनते ही ख़ुशी का एहसास हुआ। मन में प्रश्न उठा तो पूॅछ बैठा अनलिमिटेड इंटरनेट से क्या कर सकते हैं? जवाब मिला कुछ भी चलाओ सब आपके हाथ में है। मारे ख़ुशी के ठिकाना ही नही रहा। आज मल्टीमीडिया फोन के साथ पहला दिन था आफिस का। रास्ते में गेम खेलते हुए जा रहा था। कानो में अवाज पडी मरेगा क्या? देखा कार से ड्राईवर की आवाज आई थी। आज तो बाल-बाल बच गये, कार वाला उड़ा ही देता। फिर सोचा मैं तो वैसे भी आगे पीछे देख कर चलता हूॅ। मुझे थोड़ी कुछ होने वाला है। आज आफिस थोड़ा जल्दी आ गया था। सोचा अभी समय है। समय नष्ट करने से अच्छे थोड़ा मोबाईल में गेम खेल लिया जाए। अब तो फुर्सत नही थी। जहॉ समय मिलता मोबाईल में लग जाते। खाना खाने का समय हुआ तो किसी का मैसेज आ गया। लगा जवाब देना जरूरी है। अब एक हाथ में रोटी और दूसरे में मोबाईल। शाम को घर पहुॅचे तो देखा बेटा फोन पर व्यस्त था, पत्नी टीवी देखने में व्यस्त थी। मैं भी जाते ही फोन पर लग गया। समय कैसे बीता पता ही नही चला। अचानक से ध्यान हटा तो देखा धर्मपत्नी जी चिल्ला रही थी। कब से खाने के लिए पूछ रही हूॅ खाना है या नही। घड़ी में नजर पड़ी देखा रात के पूरे दस बज चुके थे। भोजन करने के पश्चात फिर मोबाईल में लग गया। रात को बड़ी मुश्किल में सोए। चिंता भी सता रही थी कहीं किसी का कोई मैसेज तो नही। चार बजे प्रातः नींद खुली तो सोंचा देखूॅ किसी का कोई मैसेज तो नही आया। मन उदास हो गया देखा किसी का कोई मैसेज नही। खैर फिर सो गये। अब बाप-बेटा दोनो आठ बजे उठते थे। अब तो ये नियम रोज का हो गया था। धीरे-धीरे दिन बीतते गये। न दिन का पता न रात की सुध, न खाने की चिंता न सोने की सुध। कुछ महीने बाद याद आया किसी रिश्तेदार से बात नही हुई। फोन किया तो जवाब मिला आनलाईन तो रहते हैं। आनलाईन बात कर लिया करो। अब फेसबुक पर रिश्तेदार और बाहर के मित्र मिलाकर हमारे 800 मित्र थे। बड़ी ख़ुशी का अनुभव होता था मित्रों की संख्या देखकर। कुछ समय बाद धर्मपत्नी जी का र्स्वगवास हो गया। दुख की घड़ी थी। फेसबुक पर स्टेटस अपडेट कर दिया। लोग संवेदनाएं प्रकट कर रहे थे। अंतिम क्रिया-कर्म में शामिल होने वाला कोई नही था। रिश्ते मोबाईल में खो चुके थे। मोबाईल के चक्कर में शरीर पर भी ध्यान नही दिया। सो शरीर भी कमजोर हो चुका था। अब अहसास हो रहा था कि हमने क्या पाया क्या खोया। मोबाइल के आनन्द को पाने के लिए हमने जिंदगी का आनन्द खो दिया। जिस नियम को बनाने के लिए पूरा जीवन प्रयासरत रहा। वो नियम भी टूट चुके थे। मोबाईल की दुनिया में सब रिश्ते नाते खत्म हो गये। अब सोंच रहा हूॅ ये बात अपने बेटे को कैसे समझाई जाये?
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लेखक - केशव कुमार पांडेय
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