हम भारतीय शाकाहारी होने का दावा करते हैं, व्रत उपवास रखते हैं, पूजा में हलुआ का भोग लगाते हैं लेकिन यह ध्यान नहीं रखते कि जिस चीनी का प्रयोग कर रहे हैं वह किस जीव के हड्डी के चूरे से साफ की गई है। हम जिस वनस्पति घी का प्रयोग करते हैं उसमें किस जानवर की चर्बी मिली हुई है। हम जिस साबुन का प्रयोग करते हैं उसमें किस जानवर की चर्बी मिली है। आधुनिकता के बाजारवाद में कौन धार्मिक है और कौन अधर्मी यह निश्चित करना कठिन हो गया है।
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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी
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