समय बदल रहा है माहौल बदल रहा है । बदलाव की बहार कहीं काफी तेज है तो कहीं काफी मध्यम गति से चल रही है । कुछ अपने आप को संस्कृति का रक्षक मानते है तो कुछ आधुनिक समाज का आइना । जैसे-जैसे समय बढ़ रहा है अपराधों की संख्या भी बढ़ रही है । जिसमे बलात्कार एवं छेड़ -छड़ की घटनाये अधिक मात्रा में बढ़ी हैं । ये असहनीय घटनाये हैं जो तेजी से हैं । इसका जिम्मेदार महिलाओ की वेशभूषा एवं उनके रहन सहन के तरीको को समझा जाता है । हम अब भी वही के वही है । मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ । आज भी हम महिलाओ को दोषी ठहराते हैं । प्रश्न यह उठता है की शहरों से दूर ग्रामीण छेत्रो में रहने वाली महिलाये जिनका पश्चिमी पहनावों से कोई वास्ता नहीं है उनके साथ यह घटनाये क्यों घटती हैं । वो तो आज भी वही बंधन वाला और पुरानी जीवन शैली जी रही हैं । आखिर क्यों उनके साथ ये घटनाये घट रही हैं ? द्वापर में महाभारत का कारण द्रौपदी का चीर हरण था । सभा में उपस्थित सभी लोग एक ही परिवार के सदस्य थे । अधिकतर लोग उस दृश्य का आनंद ले रहे थे। तब भगवन श्री कृष्ण ने रक्षा की । कथा सब ने सुनी है पर आज भी वही स्तिथि है । फर्क बस इतना है की आज श्री कृष्ण जैसा कोई नहीं है जो रक्षा कर सके । अभी पिछले हफ्ते बॉलीवुड की पिंक फिल्म रिलीज़ हुई । जिसमे इस ज्वलंत मुद्दे को जीवंत करने के लिए फिल्म के कलाकारों एवं पूरी टीम ने भरपूर प्रयास किया किया है कि समाज को महिलाओं के प्रति सोंच बदलनी चाहिए। इसे सिर्फ फिल्म के नज़रीये से देखकर इसे भुलाया न जाये बल्कि इस सीख को आगे पहुँचाया जाये । फिल्म में एक शब्द को विशेष रूप से प्रकाशित किया गया है वो है ' No ' । इस शब्द की क्या अहमियत है हम फिल्म को देखकर अच्छे से समझा जा सकता है । कोई भी कार्य करने से पहले आगे वाले की क्या इच्छा है उसका सम्मान करना चाहिए। अपनी इच्छा थोपनी नहीं चाहिए । किसी के लिए अमर्यादित टिप्पणी करना बुद्धिजीवियों की निशानी नहीं है। जैसे पुरुष अपना जीवन जीते हैं महिलाओं को भी वो अधिकार है। हँसने, पढ़ने, खेलने और किसी के साथ मित्रता रखने का। हम अपनी गलतिया छिपाने के लिए उनके रहन सहन को दोष देते हैं । इस समस्या के समाधान के लिए जन भागीदारी की आवश्यकता है । केवल प्रशासन या एक व्यक्ति इस समस्या का समाधान नहीं कर सकता । इसके लिए जागरूकता की जरुरत है जो विचारों में परिवर्तन ला सके ।
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लेखक - केशव कुमार पांडेय
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