परिवार में बच्चों को महंगे स्कूल में पढ़ाने की बहस हो रही है, बच्चे भारी किताबों-कापियों के लिए महंगे बैग ढूंढ रहे हैं, महंगी कोचिंग-ट्यूशन खोज रहे हैं, बच्चों के हाथ में साइकिल की जगह स्कूटी, बाइक की जिद हो रही है, उन्हें नये-नये स्मार्ट फोन चाहिए। माता-पिता टीवी पर अपनी पसंद के चैनल देखना चाहते हैं। माता-पिता बच्चों को बीमारी में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को दिखा रहे हैं। नई-नई बीमारियां, नई-नई दवाईयां आ चुकी हैं। फास्ट-फूड और कोल्डडिंÑंक की बाजार में बाढ़ आ रही है। बोर्नवीटा पीकर भी बच्चे चिडचिड़े और जिद्दी हो रहे हैं। सरकारें नये-नये कानून बना रही हैं। कानूनों को सख्त करने की मांग को लेकर आन्दोलन हो रहे हैं। आधुनिकता के रंग में रंगा समाज हैरान-परेशान है कि बाजारवाद ने अनुशासन की जड़ें हिला कर रख दी हैं आखिर आजाद देश में तो जी रहे हैं।
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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी
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