आधुनिकता की चकाचौंध में नारी घर की चारदीवारी से बाहर तो निकली परन्तु वासना के दुराचार की दलदल में फंस गई है। समाज ने नैतिक शिक्षा और ब्राहृचर्य को भुला दिया, तामसी खान-पान और खुलापन अपना लिया। बाजारवाद में नारी को विज्ञापन की वस्तु बना दिया। संयुक्त परिवार टूट गये और हम दो हमारे दो रह गया। महिला-पुरुष कामकाजी हो गये। बालक-बालिकायें एकाकी और जिद्दी हो गये। समाज में मांसाहार, शराब, तम्बाकू और वेश्यावृत्ति के बढ़ते प्रभाव से बाल और महिला यौन शौषण, हिंसा, अश्लीलता फैल रही है जिससे यज्ञ भूमि, देवभूमि भारत जो आध्यात्मिक विश्वगुरू कहलाता था आज भौतिकतावाद का गुलाम बनकर रह गया है, अनाचार और दुराचार को मानवाधिकार और अभिव्यक्ति का आजादी मान लिया गया है। पूर्वजों के श्राद्ध को मनाने वाले भारत में, तलाक और घरेलू हिंसा दिखाई देती है।
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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी
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