दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का दुर्भाग्य यही है कि यहां सत्ताएं बदलती हैं लेकिन व्यवस्थाएं वहीं की वहीं रहती हैं। दशकों से ऐसा ही होता आया है। फिलवक्त देश के ज्यादातर हिस्सों में किसान आन्दोलन पर उतारू हैं। न तो आत्महत्याओं का दौर थमा है और न ही किसानों को गोली मारे जाने का। जो पूर्व की सरकारों में होता चला आया है वहीं वर्तमान सरकार में हो रहा है। समस्या की जड़ में कोई भी सरकार जाना ही नहीं चाहती है क्योंकि वह अच्छी तरह जानती है कि जब तक यह समस्या बनी रहेगी तब तक इसका राजनीतिक फायदा मिलता रहेगा। होना तो यह चाहिए था कि किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिले परन्तु किसानों को कर्ज माफी के रूप में खैरात मिली। एक राज्य की सरकार कर्ज माफी की घोषणा करती है तो दूसरे राज्य के किसान भी वहां की सरकार से कर्ज माफी की मांग कर बैठते हैं। दरअसल कर्ज माफी किसानों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। पूरे मानव समाज का पेट भरने वाला अन्नदाता क्यों खुदकुशी कर लेता है जरूरत इस पर चिंतन करने की है। किसान अपने द्वारा की गई एक फसल से न तो बच्चों को सालभर ठीक से पढ़ा पाता है न फसल उगाने के लिए लिया हुआ कर्ज ही चुका पाता है। हैरानी की बात देखिये किसान की वही फसल एक आढ़ती से लेकर न जाने कितने लोगों को मालामाल कर जाती है। अब वक्त आ गया है कि जब हमारी सरकार को समस्याओं की जड़ में जाकर किसानों के बारे में सोचना होगा। जो नीतियां गलत हैं उन्हें बदलना होगा। लोगों ने सत्ता बदली है तो सरकार को व्यवस्थाएं बदलनी होंगी।
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