नए साल के जश्न के मौके पर बंगलुरू में जो कुछ हुआ वो देश में कोई पहली बार नहीं हुआ है। महिलाओं के साथ बदसलूकी की ऐसी वारदातें भी हुई हैं जिन्होंने मानवता को शर्मसार करके रख दिया। ऐसी वारदातों की जमकर निंदा की जाती है, उन्हें शर्मनाक करार दिया जाता है। फिल्म जगत से लेकर राजनीतिक एवं सामाजिक जगत की तमाम चर्चित हस्तियां अपने-अपने अंदाज में रोष प्रकट करते हैं। घटना ज्यों-ज्यों पुरानी होने लगती हैं त्यों-त्यों सभी का रोष ठंडा होने लगता है मगर एक चीज जो हमेशा सुलगती रहती है वो है पीड़ित और पीड़ित के परिजनों का दर्द। 31 दिसंबर की रात बंगलुरू में जो कुछ हुआ उससे निर्भया की मां का दर्द उभरकर सामने आ गया। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े और भर्राई आवाज में उन्होंने सरकार से पूछा कि अब क्या करोगे सरकार? दरअसल ये तो वो घटनाएं हैं जो किसी ना किसी तरह से सामने आ जाती हैं। हमारे समाज में हर रोज ना जाने कितनी महिलाएं अश्लील फब्तियों, छेड़छाड़ और बलात्कार की शिकार होती हैं जो लोक-लिहाजके डर से या फिर अभावों के चलते अपनी शिकायत बयां नहीं कर पाती हैं। सरकारें तकनीकि एवं आर्थिक बदलावों की बातें तो देश में करती हैं परन्तु मानसिक बदलाव की बात कोई सरकार मुखर होकर नहीं करती। आधुनिकता की अंधी दौड़ हमारे मानसिक पतन का कारण भी बन चुकी है और जब तक इसे नहीं रोका जायेगा तब तक हमारे देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं होंगी।
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