भारत की जनता को वसन्त के महीने में एक बार राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन को देखने का मौका दिया जाता है, लेकिन उसे बारह महीने मलिन बस्तियों और झुग्गी-झोपड़ीयों को देखना उसकी मजबूरी होता है। उसे मिड्-डे भोजन खाने के लिए मीलों पैदल चलकर स्कूल आने वाले छात्रों को देखना होता है। बरसात में जल भराव की नारकीय स्थिति में रिक्शा चालकों, ठेली पटरी वालों को रोज रोटी के लिए संघर्ष करते देखना होता है। उसे शराब जुएं तथा सट्टे में मेहनत की कमाई डूबते हुए भी देखनी होती है। दवाईयों पर छापे मनमाने दामों पर इलाज के नाम पर लूट सहते देखना होता है।
Rashtrapati Bhawan - Hindi Articles | Articles in Hindi
बच्चों को मातृभाषा के स्थान पर अंग्रेजी पढ़ने और उनको परिवार को झाड़पोंछ, जादूटोना, तांत्रिकों, ज्योतिशियों तथा धर्म-गुरू की शरण में जाते देखना होता है। अदालतों में न्याय खोजते लोगों की जिन्दगी बीतते भी देखनी होती है। उसे बाल मजदूरों और बेरोजगारों की बढ़ती संख्या देखकर सोचना होता है कि आजादी के बाद उसका भारत इक्कीसवीं सदी में आधुनिक, पुॅजीवाद और बाजारवादी हाथी हो चुका है। जिसके खाने के दॉत और दिखाने के दॉत और होते हैं।
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बच्चों को मातृभाषा के स्थान पर अंग्रेजी पढ़ने और उनको परिवार को झाड़पोंछ, जादूटोना, तांत्रिकों, ज्योतिशियों तथा धर्म-गुरू की शरण में जाते देखना होता है। अदालतों में न्याय खोजते लोगों की जिन्दगी बीतते भी देखनी होती है। उसे बाल मजदूरों और बेरोजगारों की बढ़ती संख्या देखकर सोचना होता है कि आजादी के बाद उसका भारत इक्कीसवीं सदी में आधुनिक, पुॅजीवाद और बाजारवादी हाथी हो चुका है। जिसके खाने के दॉत और दिखाने के दॉत और होते हैं।
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लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी
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